विश्व विद्वत् समाज एवं विश्व सरकारों को खुली चुनौती


आज विश्व की समस्त सरकारें परेशान हैं जनसंख्या से ! बेकारी और बेरोजगारी से हर तरह भी कमियों एवं भूखमरी तथा नित्य बढ़ते हुये अपराधों से तो मैं, परमात्मा-परमेश्वर खुदा-गॉड-भगवान् या सर्वोच्च शक्ति-सत्ता सामर्थ्यवान का यथार्थत: साक्षात्कार एवं दरश-परश तथा सुस्पष्टत: पहचान कराने वाले सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस यह चुनौतीपूर्ण उद्धोषणा कर रहा हूँ- कि मुझे कुर्सी नहीं चाहिये । मुझे कोई पद नहीं चाहिये । मुझे कोई मान-सम्मान नहीं चाहिये, फिर भी मेरा एक ही उद्देश्य है, मेरा एक ही लक्ष्य है जिसके लिये 'मैं' धरती पर आया हूँ, जिसके लिये मैं कायम हूँ । दुनिया वालों पछताओगे ! रोओगे ! सिर धुन-धुन कर, लंगोटी पहन-पहन कर, जंगलों और कन्दराओं में ढूंढ़ोंगे, मगर पाओगे नहीं ! शरीर को तपा देना पड़ेगा -- गला देना पड़ेगा फिर भी नहीं मिलूँगा ! सिर पीट-पीट कर रोना पड़ेगा, फिर क्या होगा ? वही कि -- 'का बरषा जब कृषि सुखाने । समय चूक पुनि का पछताने ॥' विश्व      वालों ! क्यों परेशान हो जनसंख्या से ! जनसंख्या तुम नहीं बढ़ा रहे हो, बल्कि परमात्मा-खुदा-गॉड-भगवान् या सर्वोच्च शक्ति-सत्ता-सामर्थ्य बढ़ा रहा है । तुम क्यों परेशान हो ? साढ़े छ: अरब क्या, साढ़े छ: खरब भी जनसंख्या हो जाय तब भी कोई परेशानी की बात नहीं । भ्रूण-हत्या एवं गर्भपात की बिल्कुल ही आवश्यकता नहीं । एक भी बेकार नहीं रहेंगे। एक भी बेरोजगार नहीं रहेंगे । दुनिया में एक भी अपराधी नहीं रहेगा । एक भी भूखे नहीं मरेंगे । एक भी भूखे नहीं रहेंगे । दुनिया में एक भी अपराधी नहीं रहेगा । मुकदमें खोजने पर भी नहीं मिलेंगे । अन्तत: विश्व के अन्तर्गत एक भी दुश्मन नहीं रहेगा तथा किसी भी प्रकार की कमी, यहाँ तक कि दु:ख और बिमारी तक नहीं रहेगी । इसका अर्थ यह भी नहीं कि डाक्टर बेकार हो जायेंगे । ये सारी बातें कोरी कल्पना नहीं, कोई स्वप्न नहीं, कोई उपन्यायिक बात नहीं ! ज्योतिषयों एवं भविष्यवक्ताओं की सी बात नहीं अपितु परमब्रम्ह-परमेश्वर या परमात्मा या परमसत्य का खुला निर्देश है, खुला ऐलान है, विश्व-समाज एवं विश्व की सरकारों को खुली चुनौती है। परन्तु शर्त यह है -- सभी के लिये एक ही जादू है, सभी उपर्युक्त बिमारियों की एक ही औषधि है कि  वर्तमानगलत एवं भ्रष्ट शिक्षा पध्दति के स्थान पर ''विद्यातत्त्वम् पध्दति'' को जितना शीघ्र हो सके, उतना ही शीघ्र अर्थात् शीघ्रातिशीघ्र लागू किया जाय और लागू ही नहीं अनिवार्यत: रूप में प्रभावी स्तर पर इसे तुरन्त लागू कराया जाय ।
लागू होने के दस वर्ष के अन्तर्गत साठ से पचहत्तर प्रतिशत तक तथा पन्द्रह वर्ष में शतप्रतिशत लागू और कथित परिणाम न दे दे, तो मैं सहर्ष विश्व-मन्च के समक्ष हर कष्टों के साथ अन्तिम दण्ड तक को स्वीकार करने का 'बचन' -- 'सत्य बचन' देता हूँ ।

अन्तत: पुन: दुहराते हुये सत्यता के साथ बता देना चाहता हूँ कि विश्व की समस्त समस्यायें -- जनसंख्या, बेकारी, बेरोजगारी हर प्रकार की कमी, अपराध, दुश्मनी एवं किसी भी प्रकार की परेशानी का एकमात्र आधार गलत एवं भ्रष्ट शिक्षा-पध्दति का होना ही है, जिससे कुव्यवस्था, अव्यवस्था एवं दुर्व्यस्था जिसका अन्तत: परिणाम विश्व-विनाश तक का होना है परन्तु प्रत्येक ही सशर्त एक ही उपाय ''विद्यातत्त्वम् पध्दति'' का ईमानदारी एवं प्रभावी तरह से शीघ्रातिशीघ्र लागू किया जाना। यह उपर्युक्त कथन मेरा लेख नहीं है, अपितु परमप्रभु परमब्रम्ह-परमेश्वर या परमात्मा-खुदा-गॉड-भगवान् या सर्वोच्च शक्ति-सत्ता-सामर्थ्यवान सार्वभौम सत्य द्वारा स्पष्टत: लिखवाया गया या बताया गया ''सत्य बचन'' है । अन्तत: शान्ति और आनन्द या अमन-चैन का राज्य होगा, सबको मुक्ति और अमरता मिलेगी, सभी निर्भयतापूर्वक सत्य-न्याय-धर्म एवं नीति को सहर्ष स्वीकार करेंगे । मिथ्या या असत्य, अन्याय या अत्याचार सुनने तक को नहीं मिलेगा, देखना तो दूर रहा । सत्पुरुषों का ही राज्य होगा, सत्पुरुष ही राजा होंगे, सत्पुरुष ही शासन-प्रशासन करेंगे । घोर से घोर मिथ्याभाषी, मिथ्याचारी, अन्यायी, अधार्मिक एवं भयंकर से भयंकर अत्याचारी एवं भ्रष्टाचारी को भी सुधार, सम्भाल एवं ''ठीक'' कर-करा देने की ताकत या सामर्थ्य यदि किसी में है तो वह एकमात्र '' विद्यातत्त्वम् पध्दति'' और परमात्मा-खुदा-गॉड-भगवान् में ही है जो अब एक सामान्य मानव की तरह भू-मण्डल पर गुप्त रूप में विचरण या भ्रमण करते हुये निरीक्षण-सर्वेक्षण एवं अपने पवित्र आत्माओं को तलाशने, खोजने तथा इकट्ठा करने में लगा हुआ है, जिसके सेवा-सहयोग से इस ' विद्यातत्त्वम् पध्दति'' को या परम सत्य-विद्या को प्रभावी तरीके से शीघ्रातिशीघ्र लागू कर करवा सके तथा इसका यश प्रदान कर सके क्योंकि परमात्मा को अपने लिये किसी भी प्रकार के यश की बात ही नहीं रहती है क्योंकि परमात्मा का न उत्थान है और न पतन ही । उत्थान-पतन तो मानव स्तर की बात है। यह लेख 'मेरा नहीं है' -- इसका मतलब है कि मुझ 'शरीर सदानन्द' से है अर्थात् यह शरीर सदानन्द का लेख नहीं अपितु परमात्मा द्वारा लिखवाया एवं सदानन्द शरीर द्वारा लिखा हुआ ''सत्य बचन'' या ''सत्य कथन'' है।

------------ सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस 

Total Pageviews

Contact

पुरुषोत्तम धाम आश्रम
पुरुषोत्तम नगर, सिद्धौर, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
फोन न. - 9415584228, 9634482845
Email - bhagwadavatari@gmail.com
brajonline@gmail.com